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Sunderkand Paath Chopai Part 37 | सुन्दरकाण्ड पाठ चौपाई भाग 37

Sunderkand Paath Chopai Part 37

श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी॥ सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा॥1॥

मूर्ख और जगत प्रसिद्ध अभिमानी रावण कानों से उसकी वाणी सुनकर खूब हँसा (और बोला-) स्त्रियों का स्वभाव सचमुच ही बहुत डरपोक होता है। मंगल में भी भय करती हो। तुम्हारा मन (हृदय) बहुत ही कच्चा (कमजोर) है॥1॥

The foolish and world famous arrogant Ravana laughed a lot after listening to her words (and said-) The nature of women is really very timid. You are afraid even in Mars. Your mind (heart) is very raw (weak)॥1॥

जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई॥ कंपहिं लोकप जाकीं त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा॥2॥

यदि वानरों की सेना आवेगी तो बेचारे राक्षस उसे खाकर अपना जीवन निर्वाह करेंगे। लोकपाल भी जिसके डर से काँपते हैं, उसकी स्त्री डरती हो, यह बड़ी हँसी की बात है॥2॥

If the army of monkeys comes then the poor demons will survive by eating them. It is a matter of great laughter that the wife of someone who even the Lokpal trembles with fear is afraid.॥2॥

अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई॥ मंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता॥3॥

रावण ने ऐसा कहकर हँसकर उसे हृदय से लगा लिया और ममता बढ़ाकर (अधिक स्नेह दर्शाकर) वह सभा में चला गया। मंदोदरी हृदय में चिंता करने लगी कि पति पर विधाता प्रतिकूल हो गए॥3॥

Saying this, Ravana laughed and hugged her and with increased affection (showing more affection) he went to the meeting. Mandodari started worrying in her heart that the Creator had turned hostile towards her husband.॥3॥

बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई॥ बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू॥4॥

ज्यों ही वह सभा में जाकर बैठा, उसने ऐसी खबर पाई कि शत्रु की सारी सेना समुद्र के उस पार आ गई है, उसने मंत्रियों से पूछा कि उचित सलाह कहिए (अब क्या करना चाहिए?)। तब वे सब हँसे और बोले कि चुप किए रहिए (इसमें सलाह की कौन सी बात है?)॥4॥

As soon as he went and sat in the meeting, he got the news that the entire enemy army had come across the sea, he asked the ministers to give proper advice (what should be done now?). Then they all laughed and said keep quiet (what is the point of advice in this?)॥4॥

जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माहीं॥5॥

आपने देवताओं और राक्षसों को जीत लिया, तब तो कुछ श्रम ही नहीं हुआ। फिर मनुष्य और वानर किस गिनती में हैं?॥5॥

You conquered the gods and demons, then there was no effort at all. Then in what number are humans and monkeys?॥5॥

दोहा 

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥37॥

मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥37॥

Minister, Vaidya and Guru – if these three, out of fear (of displeasure) or hope (of benefit) speak dear (instead of talking about benefit) (Thakur starts saying pleasant), then (respectively) state, body and religion – these Three are soon destroyed॥37॥

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