नाथ नील नल कपि द्वौ भाई। लरिकाईं रिषि आसिष पाई॥ तिन्ह कें परस किएँ गिरि भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥1॥
(समुद्र ने कहा)) हे नाथ! नील और नल दो वानर भाई हैं। उन्होंने लड़कपन में ऋषि से आशीर्वाद पाया था। उनके स्पर्श कर लेने से ही भारी-भारी पहाड़ भी आपके प्रताप से समुद्र पर तैर जाएँगे॥1॥
(Said the sea) O Lord! Neel and Nala are two monkey brothers. He had received blessings from the sage in his childhood. Just by touching them, even the heaviest mountains will float on the ocean due to your majesty.॥1॥
मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई। करिहउँ बल अनुमान सहाई॥ एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ। जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ॥2॥
मैं भी प्रभु की प्रभुता को हृदय में धारण कर अपने बल के अनुसार (जहाँ तक मुझसे बन पड़ेगा) सहायता करूँगा। हे नाथ! इस प्रकार समुद्र को बँधाइए, जिससे तीनों लोकों में आपका सुंदर यश गाया जाए॥2॥
I will also help as per my strength (as far as I can) keeping the sovereignty of God in my heart. Hey Nath! In this way bind the ocean, so that your beautiful fame is sung in all the three worlds॥2॥
एहि सर मम उत्तर तट बासी। हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥ सुनि कृपाल सागर मन पीरा। तुरतहिं हरी राम रनधीरा॥3॥
इस बाण से मेरे उत्तर तट पर रहने वाले पाप के राशि दुष्ट मनुष्यों का वध कीजिए। कृपालु और रणधीर श्री रामजी ने समुद्र के मन की पीड़ा सुनकर उसे तुरंत ही हर लिया (अर्थात् बाण से उन दुष्टों का वध कर दिया)॥3॥
With this arrow, kill the sinful people living on my northern shore. The kind and compassionate Shri Ramji, hearing the pain in the heart of the ocean, immediately defeated it (that is, killed those wicked people with arrows)॥3॥
देखि राम बल पौरुष भारी। हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥ सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा। चरन बंदि पाथोधि सिधावा॥4॥
श्री रामजी का भारी बल और पौरुष देखकर समुद्र हर्षित होकर सुखी हो गया। उसने उन दुष्टों का सारा चरित्र प्रभु को कह सुनाया। फिर चरणों की वंदना करके समुद्र चला गया॥4॥
Seeing the great strength and bravery of Shri Ramji, the sea became happy. He narrated the entire character of those wicked people to the Lord. Then after worshiping his feet he went to the sea॥4॥
छंद
निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ। यह चरित कलि मल हर जथामति दास तुलसी गायऊ॥ सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना। तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना॥
समुद्र अपने घर चला गया, श्री रघुनाथजी को यह मत (उसकी सलाह) अच्छा लगा। यह चरित्र कलियुग के पापों को हरने वाला है, इसे तुलसीदास ने अपनी बुद्धि के अनुसार गाया है। श्री रघुनाथजी के गुण समूह सुख के धाम, संदेह का नाश करने वाले और विषाद का दमन करने वाले हैं। अरे मूर्ख मन! तू संसार का सब आशा-भरोसा त्यागकर निरंतर इन्हें गा और सुन।
Samudra went to his home, Shri Raghunathji liked this opinion (his advice). This character is the destroyer of the sins of Kaliyuga, Tulsidas has sung it as per his wisdom. The set of qualities of Shri Raghunathji are the abode of happiness, the destroyer of doubt and the suppressor of sadness. Oh foolish mind! You give up all hope and confidence in the world and sing and listen to them continuously.
दोहा
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान। सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥60॥
श्री रघुनाथजी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का देने वाला है। जो इसे आदर सहित सुनेंगे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएँगे॥60॥
Praising Shri Raghunathji gives all the beautiful blessings. Those who listen to this with respect, will sail across the ocean of life without any ship (other means).॥60॥
>>>Sunderkand Paath Chaupai Part 59<<<
(सुंदरकाण्ड समाप्त)