Skip to content

Sunderkand Paath Chopai Part 38 | सुन्दरकाण्ड पाठ चौपाई भाग 38

Sunderkand Paath Chopai Part 38

सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥ अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥1॥

रावण के लिए भी वही सहायता (संयोग) आ बनी है। मंत्री उसे सुना-सुनाकर (मुँह पर) स्तुति करते हैं। (इसी समय) अवसर जानकर विभीषणजी आए। उन्होंने बड़े भाई के चरणों में सिर नवाया॥1॥

The same help (coincidence) has come for Ravana also. The ministers praise him audibly. (At this very moment) knowing the opportunity, Vibhishanji came. He bowed his head at the feet of his elder brother.

पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥ जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥2॥

फिर से सिर नवाकर अपने आसन पर बैठ गए और आज्ञा पाकर ये वचन बोले- हे कृपाल जब आपने मुझसे बात (राय) पूछी ही है, तो हे तात! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार आपके हित की बात कहता हूँ-॥2॥

Bowing his head again, he sat on his seat and after getting permission, said these words – Oh Lord, when you have asked me my opinion, oh Father! I speak for your benefit according to my wisdom -॥2॥

जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥ सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥3॥

जो मनुष्य अपना कल्याण, सुंदर यश, सुबुद्धि, शुभ गति और नाना प्रकार के सुख चाहता हो, वह हे स्वामी! परस्त्री के ललाट को चौथ के चंद्रमा की तरह त्याग दे (अर्थात्‌ जैसे लोग चौथ के चंद्रमा को नहीं देखते, उसी प्रकार परस्त्री का मुख ही न देखे)॥3॥

The person who wants his welfare, beautiful fame, good intelligence, auspicious pace and various types of happiness, he is the one, O Lord! Leave aside the forehead of another woman like the moon of Chauth (that is, just as people do not look at the moon of Chauth, in the same way do not look at the face of another woman)॥3॥

चौदह भुवन एक पति होई। भूत द्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥ गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥4॥

चौदहों भुवनों का एक ही स्वामी हो, वह भी जीवों से वैर करके ठहर नहीं सकता (नष्ट हो जाता है) जो मनुष्य गुणों का समुद्र और चतुर हो, उसे चाहे थोड़ा भी लोभ क्यों न हो, तो भी कोई भला नहीं कहता॥4॥

Even if there is only one lord of the fourteen worlds, he also cannot stop (get destroyed) by enmity with the living beings. A person who is an ocean of virtues and is clever, even if he has a little greed, no one says anything good to him.॥4॥

दोहा 

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ। सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥38॥

हे नाथ! काम, क्रोध, मद और लोभ- ये सब नरक के रास्ते हैं, इन सबको छोड़कर श्री रामचंद्रजी को भजिए, जिन्हें संत (सत्पुरुष) भजते हैं॥38॥

Hey Nath! Lust, anger, pride and greed – all these are the paths to hell, leave them all and worship Shri Ramchandraji, whom saints (good men) worship.॥38॥

>>>Sunderkand Paath Chopai Part 39<<<

>>>Sunderkand Paath Chopai Part 37<<<

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *