संत शिरोमणि तुलसीदासजी हिंदी साहित्य के महान कवि, दार्शनिक और भक्त हैं। उनकी रचना रामचरित मानस हिंदी साहित्य का सर्वोच्च ग्रंथ माना जाता है। रामचरित मानस में कुल सात कांड हैं, जिनमें से सुंदरकांड(Sunderkand) सबसे प्रसिद्ध है। सुंदरकांड में भगवान राम और सीताजी के विवाह की कथा वर्णित है।
तुलसीदासजी ने रामचरित मानस की रचना सोलहवीं शताब्दी में की थी। उन्होंने इस रचना को भोजपत्र पर लिखा था। भोजपत्र एक प्रकार का पेड़ है, जिसकी छाल से पतले-पतले शीट बनाई जाती हैं। इन शीटों को आपस में जोड़कर एक बड़ी पुस्तक बनाई जाती है।
तुलसीदासजी(Tulsidas ji) की सुंदरकांड पांडुलिपि उत्तर प्रदेश के धौरहरा तहसील के दुलही गाँव में श्री सुंदर लाल दीक्षित जी के परिवार के पास सुरक्षित रखी हुई है। वर्तमान समय में इसकी देखरेख श्री जागेश्वर प्रसाद दीक्षित जी कर रहे हैं।
पांडुलिपि का विवरण
सुंदरकांड पांडुलिपि भोजपत्र पर लिखी गई है। यह पांडुलिपि 12.5 इंच चौड़ी और 19.5 इंच लंबी है। पांडुलिपि में कुल 134 पन्ने हैं। प्रत्येक पृष्ठ पर 22 पंक्तियाँ हैं। पांडुलिपि में सुंदरकांड की कथा (Sunderkand ki katha) का वर्णन बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण भाषा में किया गया है।
पांडुलिपि के पन्ने बहुत ही नाजुक हैं। इनकी देखभाल करने के लिए इन पन्ने को एक विशेष प्रकार के कागज में लपेटकर रखा जाता है। पांडुलिपि को रखने के लिए एक विशेष प्रकार का लकड़ी का बक्सा बनाया गया है।
पांडुलिपि का महत्व
तुलसीदासजी की सुंदरकांड पांडुलिपि एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। यह पांडुलिपि हमें तुलसीदासजी के लेखन शैली और उनके साहित्यिक कौशल का अंदाजा लगाने में मदद करती है। यह पांडुलिपि हिंदी साहित्य के लिए एक अमूल्य धरोहर है।
पांडुलिपि को देखने का तरीका
तुलसीदासजी की सुंदरकांड पांडुलिपि को देखने के लिए आपको धौरहरा तहसील के दुलही गाँव में जाना होगा। श्री जागेश्वर प्रसाद दीक्षित जी से संपर्क करके आप पांडुलिपि को देखने का समय ले सकते हैं।
श्री जागेश्वर प्रसाद दीक्षित जी एक बहुत ही सरल और मिलनसार व्यक्ति हैं। वे पांडुलिपि को देखने के लिए आने वाले लोगों का बहुत आदर करते हैं। वे पांडुलिपि के बारे में बहुत ही रोचक बातें बताते हैं।
>>>>भगवान की कृपा पाने का अचूक तरीका!<<<<
निष्कर्ष
तुलसीदासजी की सुंदरकांड पांडुलिपि हिंदी साहित्य का एक अनमोल रत्न है। यह पांडुलिपि हमें तुलसीदासजी के साहित्यिक कौशल और उनकी लेखन शैली का अंदाजा लगाने में मदद करती है। यह पांडुलिपि हिंदी साहित्य के लिए एक अमूल्य धरोहर है।