सादर तेहि आगें करि बानर। चले जहाँ रघुपति करुनाकर॥ दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता। नयनानंद दान के दाता॥1॥
विभीषणजी को आदर सहित आगे करके वानर फिर वहाँ चले, जहाँ करुणा की खान श्री रघुनाथजी थे। नेत्रों को आनंद का दान देने वाले (अत्यंत सुखद) दोनों भाइयों को विभीषणजी ने दूर ही से देखा॥1॥
With respect to Vibhishanji, the monkeys then went to where Shri Raghunathji, the mine of compassion, was. Vibhishan ji saw from a distance the two brothers who were giving pleasure to the eyes (extremely pleasant).॥1॥
बहुरि राम छबिधाम बिलोकी। रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी॥ भुज प्रलंब कंजारुन लोचन। स्यामल गात प्रनत भय मोचन॥2॥
फिर शोभा के धाम श्री रामजी को देखकर वे पलक (मारना) रोककर ठिठककर (स्तब्ध होकर) एकटक देखते ही रह गए। भगवान् की विशाल भुजाएँ हैं लाल कमल के समान नेत्र हैं और शरणागत के भय का नाश करने वाला साँवला शरीर है॥2॥
Then seeing Shobha’s abode Shri Ramji, he stopped blinking and remained stunned. God has huge arms, eyes like red lotus and a dark body that destroys the fear of surrender.॥2॥
सघ कंध आयत उर सोहा। आनन अमित मदन मन मोहा॥ नयन नीर पुलकित अति गाता। मन धरि धीर कही मृदु बाता॥3॥
सिंह के से कंधे हैं, विशाल वक्षःस्थल (चौड़ी छाती) अत्यंत शोभा दे रहा है। असंख्य कामदेवों के मन को मोहित करने वाला मुख है। भगवान् के स्वरूप को देखकर विभीषणजी के नेत्रों में (प्रेमाश्रुओं का) जल भर आया और शरीर अत्यंत पुलकित हो गया। फिर मन में धीरज धरकर उन्होंने कोमल वचन कहे॥3॥
He has the shoulders of a lion and his huge chest is very attractive. He has a face that fascinates the minds of innumerable Kamdevs. Seeing the form of God, Vibhishanji’s eyes filled with tears of love and his body became very excited. Then with patience in his mind he said gentle words.॥3॥
नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥ सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥4॥
हे नाथ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ। हे देवताओं के रक्षक! मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है। मेरा तामसी शरीर है, स्वभाव से ही मुझे पाप प्रिय हैं, जैसे उल्लू को अंधकार पर सहज स्नेह होता है॥4॥
Hey Nath! I am the brother of Dashmukh Ravana. O protector of the gods! I was born in a demon clan. I have a Tamasic body, by nature I love sins, just as an owl has an instinctive love for darkness.॥4॥
दोहा
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर। त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥45॥
मैं कानों से आपका सुयश सुनकर आया हूँ कि प्रभु भव (जन्म-मरण) के भय का नाश करने वाले हैं। हे दुखियों के दुःख दूर करने वाले और शरणागत को सुख देने वाले श्री रघुवीर! मेरी रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए॥45॥
I have heard from your ears that God is going to destroy the fear of birth and death. O Shri Raghuveer, who removes the sorrows of the afflicted and gives happiness to those who surrender themselves! Protect me, protect me॥45॥