सखा कही तुम्ह नीति उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई। मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दुख पावा॥1॥
(श्री रामजी ने कहा-) हे सखा! तुमने अच्छा उपाय बताया। यही किया जाए, यदि दैव सहायक हों। यह सलाह लक्ष्मणजी के मन को अच्छी नहीं लगी। श्री रामजी के वचन सुनकर तो उन्होंने बहुत ही दुःख पाया॥1॥
(Shri Ramji said-) Hey friend! You suggested a good solution. This should be done only if God helps. Lakshmanji did not like this advice. He felt very sad after hearing the words of Shri Ramji.॥1॥
नाथ दैव कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥ कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा॥2॥
(लक्ष्मणजी ने कहा-) हे नाथ! दैव का कौन भरोसा! मन में क्रोध कीजिए (ले आइए) और समुद्र को सुखा डालिए। यह दैव तो कायर के मन का एक आधार (तसल्ली देने का उपाय) है। आलसी लोग ही दैव-दैव पुकारा करते हैं॥2॥
(Lakshmanji said-) O Lord! Who can trust God? Build anger in your mind and dry up the ocean. This God is just a support (a way to console) the mind of a coward. Only lazy people call ‘Daiva-Daiva’.॥2॥
सुनत बिहसि बोले रघुबीरा। ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा॥ अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई। सिंधु समीप गए रघुराई॥3॥
यह सुनकर श्री रघुवीर हँसकर बोले- ऐसे ही करेंगे, मन में धीरज रखो। ऐसा कहकर छोटे भाई को समझाकर प्रभु श्री रघुनाथजी समुद्र के समीप गए॥3॥
Hearing this, Shri Raghuveer laughed and said – I will do it like this, be patient in your mind. Saying this and explaining it to his younger brother, Lord Shri Raghunathji went near the sea.॥3॥
प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई। बैठे पुनि तट दर्भ डसाई॥ जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए। पाछें रावन दूत पठाए॥4॥
उन्होंने पहले सिर नवाकर प्रणाम किया। फिर किनारे पर कुश बिछाकर बैठ गए। इधर ज्यों ही विभीषणजी प्रभु के पास आए थे, त्यों ही रावण ने उनके पीछे दूत भेजे थे॥4॥
He first bowed his head and saluted. Then he spread a cushion on the shore and sat down. Here, as soon as Vibhishanji came to the Lord, Ravana sent messengers after him.॥4॥
दोहा
सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह। प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह॥51॥
कपट से वानर का शरीर धारण कर उन्होंने सब लीलाएँ देखीं। वे अपने हृदय में प्रभु के गुणों की और शरणागत पर उनके स्नेह की सराहना करने लगे॥51॥
By deceitfully assuming the body of a monkey, he witnessed all the pastimes. He started appreciating the qualities of the Lord in his heart and His affection towards those who surrendered to Him.॥51॥