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Sunderkand Paath Chaupai Part 56 | सुन्दरकाण्ड पाठ चौपाई भाग 56

Sunderkand Paath Chaupai Part 56

राम तेज बल बुधि बिपुलाई। सेष सहस सत सकहिं न गाई॥ सक सर एक सोषि सत सागर। तव भ्रातहि पूँछेउ नय नागर॥1॥

श्री रामचंद्रजी के तेज (सामर्थ्य), बल और बुद्धि की अधिकता को लाखों शेष भी नहीं गा सकते। वे एक ही बाण से सैकड़ों समुद्रों को सोख सकते हैं, परंतु नीति निपुण श्री रामजी ने (नीति की रक्षा के लिए) आपके भाई से उपाय पूछा॥1॥

Even lakhs of people cannot sing the greatness, strength and intelligence of Shri Ramchandraji. They can suck hundreds of oceans with a single arrow, but Shri Ramji, adept in policy, asked your brother for a solution (to protect the policy)॥1॥

तासु बचन सुनि सागर पाहीं। मागत पंथ कृपा मन माहीं॥ सुनत बचन बिहसा दससीसा। जौं असि मति सहाय कृत कीसा॥2॥

उनके (आपके भाई के) वचन सुनकर वे (श्री रामजी) समुद्र से राह माँग रहे हैं, उनके मन में कृपा भी है (इसलिए वे उसे सोखते नहीं)। दूत के ये वचन सुनते ही रावण खूब हँसा (और बोला-) जब ऐसी बुद्धि है, तभी तो वानरों को सहायक बनाया है!॥2॥

Hearing his (your brother’s) words, he (Shri Ramji) is asking for direction from the ocean, he also has kindness in his heart (that’s why he doesn’t absorb it). As soon as Ravana heard these words of the messenger, he laughed a lot (and said –) When you have such intelligence, that is why you have made monkeys your helpers!॥2॥

सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई। सागर सन ठानी मचलाई॥ मूढ़ मृषा का करसि बड़ाई। रिपु बल बुद्धि थाह मैं पाई॥3॥

स्वाभाविक ही डरपोक विभीषण के वचन को प्रमाण करके उन्होंने समुद्र से मचलना (बालहठ) ठाना है। अरे मूर्ख! झूठी बड़ाई क्या करता है? बस, मैंने शत्रु (राम) के बल और बुद्धि की थाह पा ली॥3॥

Naturally, by obeying the words of cowardly Vibhishan, he has decided to fight with the sea (balahath). Hey idiot! What does boasting do? That’s it, I have fathomed the strength and intelligence of the enemy (Ram)॥3॥

सचिव सभीत बिभीषन जाकें। बिजय बिभूति कहाँ जग ताकें॥ सुनि खल बचन दूत रिस बाढ़ी। समय बिचारि पत्रिका काढ़ी॥4॥

जिसके डरपोंक बिभीषण से मंत्री हैं उसके विजय और विभूति कहाँ? || खल रावनके ये वचन सुनकर दूतको बड़ा क्रोध आया| इससे उसने अवसर जानकर लक्ष्मणके हाथकी पत्री निकाली||॥4॥

Where is his victory and glory whose ministers are fearful and fearful? , Hearing these words of Khal Ravana, the messenger became very angry. Taking advantage of this, he took out the letter from Lakshman’s hand.|॥4॥

रामानुज दीन्हीं यह पाती। नाथ बचाइ जुड़ावहु छाती॥ बिहसि बाम कर लीन्हीं रावन। सचिव बोलि सठ लाग बचावन॥5॥

(और कहा-) श्री रामजी के छोटे भाई लक्ष्मण ने यह पत्रिका दी है। हे नाथ! इसे बचवाकर छाती ठंडी कीजिए। रावण ने हँसकर उसे बाएँ हाथ से लिया और मंत्री को बुलवाकर वह मूर्ख उसे बँचाने लगा॥5॥

(And said-) Shri Ramji’s younger brother Laxman has given this magazine. Hey Nath! Save it and cool your chest. Ravana laughed and took him with his left hand and after calling the minister, the fool started saving him.॥5॥

दोहा 

बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस। राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस॥56क॥

(पत्रिका में लिखा था-) अरे मूर्ख! केवल बातों से ही मन को रिझाकर अपने कुल को नष्ट-भ्रष्ट न कर। श्री रामजी से विरोध करके तू विष्णु, ब्रह्मा और महेश की शरण जाने पर भी नहीं बचेगा॥56 (क)॥

(It was written in the magazine-) Hey fool! Do not destroy and corrupt your family by pleasing the mind with mere words. By opposing Shri Ramji, you will not be saved even if you seek refuge in Vishnu, Brahma and Mahesh.56 (a)॥

की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग। होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग॥56ख॥

या तो अभिमान छोड़कर अपने छोटे भाई विभीषण की भाँति प्रभु के चरण कमलों का भ्रमर बन जा। अथवा रे दुष्ट! श्री रामजी के बाण रूपी अग्नि में परिवार सहित पतिंगा हो जा (दोनों में से जो अच्छा लगे सो कर)॥56 (ख)॥

Either leave your pride and become a devotee of the Lord’s lotus feet like your younger brother Vibhishan. Oh you wicked! Become moths along with your family in the fire of Shri Ramji’s arrow (do whatever feels good among the two)॥56 (b)॥

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