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Sunderkand Paath Chopai Part 1 | सुन्दरकाण्ड पाठ चौपाई भाग 1

Sunderkand Paath Chopai Part 1

जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥ तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥

जाम्बवान्‌ के सुंदर वचन सुनकर हनुमान्‌जी के हृदय को बहुत ही भाए। (वे बोले-) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना॥1॥

Hanumanji felt very happy after hearing the beautiful words of Jambavan. (He said-) Hey brother! You people will wait for me till then after enduring sorrow and eating tubers, roots and fruits.1॥

जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥ यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥2॥

जब तक मैं सीताजी को देखकर लौट न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमान्‌जी हर्षित होकर चले॥2॥

Until I return after seeing Sitaji. The work will definitely get done, because I am very happy. Saying this and bowing to everyone and keeping Shri Raghunathji in his heart, Hanumanji walked away happily.2॥

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥ बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥3॥

समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमान्‌जी खेल से ही (अनायास ही) कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके अत्यंत बलवान्‌ हनुमान्‌जी उस पर से बड़े वेग से उछले॥3॥

There was a beautiful mountain on the edge of the sea. Hanumanji playfully (spontaneously) jumped on him and after remembering Shri Raghuveer again and again, the extremely strong Hanumanji jumped on him with great speed.3॥

जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥ जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥4॥

जिस पर्वत पर हनुमान्‌जी पैर रखकर चले, वह तुरंत ही पाताल में धँस गया। जैसे श्री रघुनाथजी का अमोघ बाण चलता है, उसी तरह हनुमान्‌जी चले॥4॥

The mountain on which Hanumanji walked immediately sank into the underworld. Just as Shri Raghunathji’s infallible arrow moves, so should Hanumanji move.4॥

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5॥

समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात्‌ अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)॥5॥

Considering him to be the messenger of Shri Raghunathji, the ocean said to the mountain Mainak, O Mainak! You are the one who removes their tiredness (i.e. gives them rest on you)॥5॥

दोहा 

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥1॥

भावार्थ:-हनुमान्‌जी ने उसे हाथ से छू दिया, फिर प्रणाम करके कहा- भाई! श्री रामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहाँ?॥1॥

Meaning: Hanumanji touched him with his hand, then bowed and said – Brother! Where can I rest without doing the work of Shri Ramchandraji?॥1॥

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