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Sunderkand Paath Chaupai Part 46 | सुन्दरकाण्ड पाठ चौपाई भाग 46

Sunderkand Paath Chaupai Part 46

अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥ दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥1॥

प्रभु ने उन्हें ऐसा कहकर दंडवत्‌ करते देखा तो वे अत्यंत हर्षित होकर तुरंत उठे। विभीषणजी के दीन वचन सुनने पर प्रभु के मन को बहुत ही भाए। उन्होंने अपनी विशाल भुजाओं से पकड़कर उनको हृदय से लगा लिया॥1॥

When the Lord saw him bowing down saying this, he became very happy and immediately got up. The Lord was very pleased to hear the humble words of Vibhishanji. He held them with his huge arms and hugged them to his heart.

अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भय हारी॥ कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा॥2॥

छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित गले मिलकर उनको अपने पास बैठाकर श्री रामजी भक्तों के भय को हरने वाले वचन बोले- हे लंकेश! परिवार सहित अपनी कुशल कहो। तुम्हारा निवास बुरी जगह पर है॥2॥

Embracing his younger brother Lakshmanji and making him sit near him, Shri Ramji spoke words that dispelled the fear of the devotees – O Lankesh! Tell us about your well-being along with your family. Your residence is in a bad place.॥2॥

खल मंडली बसहु दिनु राती। सखा धरम निबहइ केहि भाँती॥ मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती। अति नय निपुन न भाव अनीती॥3॥

दिन-रात दुष्टों की मंडली में बसते हो। (ऐसी दशा में) हे सखे! तुम्हारा धर्म किस प्रकार निभता है? मैं तुम्हारी सब रीति (आचार-व्यवहार) जानता हूँ। तुम अत्यंत नीतिनिपुण हो, तुम्हें अनीति नहीं सुहाती॥3॥

You live in the company of wicked people day and night. (In such a situation) Oh dear! How do you practice your religion? I know all your manners (behavior). You are very adept at policy, you do not like unethical behavior॥3॥

बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देइ बिधाता॥ अब पद देखि कुसल रघुराया। जौं तुम्ह कीन्हि जानि जन दाया॥4॥

हे तात! नरक में रहना वरन्‌ अच्छा है, परंतु विधाता दुष्ट का संग (कभी) न दे। (विभीषणजी ने कहा-) हे रघुनाथजी! अब आपके चरणों का दर्शन कर कुशल से हूँ, जो आपने अपना सेवक जानकर मुझ पर दया की है॥4॥

Oh father! It is better to live in hell, but God should (never) give company to the wicked. (Vibhishanji said-) O Raghunathji! Now I am feeling well after seeing your feet, considering you as your servant and have shown mercy on me.॥4॥

दोहा 

तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम। जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥46॥

तब तक जीव की कुशल नहीं और न स्वप्न में भी उसके मन को शांति है, जब तक वह शोक के घर काम (विषय-कामना) को छोड़कर श्री रामजी को नहीं भजता॥46॥

Till then, the living being is not well and neither is his mind at peace even in his dreams, unless he leaves his work (objects and desires) in the house of sorrow and worships Shri Ramji.॥46॥

https://sunderkandpaath.com/wp-content/uploads/2023/12/sundarkand46.mp3

>>>Sunderkand Paath Chopai Part 47<<<

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