बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥ प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥1॥
प्रभु उनको बार-बार उठाना चाहते हैं, परंतु प्रेम में डूबे हुए हनुमान्जी को चरणों से उठना सुहाता नहीं। प्रभु का करकमल हनुमान्जी के सिर पर है। उस स्थिति का स्मरण करके शिवजी प्रेममग्न हो गए॥1॥
The Lord wants to lift him up again and again, but Hanumanji, immersed in love, does not feel comfortable getting up from his feet. Lord’s Karakamal is on Hanumanji’s head. Remembering that situation, Lord Shiva fell in love.॥1॥
सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर॥ कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा॥2॥
फिर मन को सावधान करके शंकरजी अत्यंत सुंदर कथा कहने लगे- हनुमान्जी को उठाकर प्रभु ने हृदय से लगाया और हाथ पकड़कर अत्यंत निकट बैठा लिया॥2॥
Then, after alerting his mind, Shankarji started telling a very beautiful story – God picked up Hanumanji, hugged him to his heart, held his hand and made him sit very close.॥2॥
कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥ प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना॥3॥
हे हनुमान्! बताओ तो, रावण के द्वारा सुरक्षित लंका और उसके बड़े बाँके किले को तुमने किस तरह जलाया? हनुमान्जी ने प्रभु को प्रसन्न जाना और वे अभिमानरहित वचन बोले- ॥3॥
Hey Hanuman! Tell me, how did you burn Lanka and its huge fort protected by Ravana? Hanumanji felt pleased with the Lord and spoke words without pride – ॥3॥
साखामग कै बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई॥ नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥4॥
बंदर का बस, यही बड़ा पुरुषार्थ है कि वह एक डाल से दूसरी डाल पर चला जाता है। मैंने जो समुद्र लाँघकर सोने का नगर जलाया और राक्षसगण को मारकर अशोक वन को उजाड़ डाला,॥4॥
This is the great effort of the monkey that he moves from one branch to another. I crossed the sea and burnt the golden city and destroyed the Ashoka forest by killing the demons, ॥4॥
सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥5॥
यह सब तो हे श्री रघुनाथजी! आप ही का प्रताप है। हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता (बड़ाई) कुछ भी नहीं है॥5॥
All this, O Shri Raghunathji! It is your glory. Hey Nath! There is no glory of mine in this.॥5॥
दोहा
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल। तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल॥33॥
हे प्रभु! जिस पर आप प्रसन्न हों, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है। आपके प्रभाव से रूई (जो स्वयं बहुत जल्दी जल जाने वाली वस्तु है) बड़वानल को निश्चय ही जला सकती है (अर्थात् असंभव भी संभव हो सकता है)॥3॥
Oh God! Nothing is difficult for someone you are happy with. With your influence, cotton (which itself burns very quickly) can definitely burn Badwanal (that is, even the impossible can become possible)॥3॥