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Sunderkand Paath Chopai Part 36 | सुन्दरकाण्ड पाठ चौपाई भाग 36

Sunderkand Paath Chopai Part 36

उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब तें जारि गयउ कपि लंका॥ निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा।1॥

वहाँ (लंका में) जब से हनुमान्‌जी लंका को जलाकर गए, तब से राक्षस भयभीत रहने लगे। अपने-अपने घरों में सब विचार करते हैं कि अब राक्षस कुल की रक्षा (का कोई उपाय) नहीं है॥1॥

Ever since Hanumanji went there (Lanka) after burning Lanka, the demons started living in fear. Everyone in their homes thinks that now there is no way to protect the Rakshasa clan.॥1॥

जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई॥ दूतिन्ह सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी॥2॥

जिसके दूत का बल वर्णन नहीं किया जा सकता, उसके स्वयं नगर में आने पर कौन भलाई है (हम लोगों की बड़ी बुरी दशा होगी)? दूतियों से नगरवासियों के वचन सुनकर मंदोदरी बहुत ही व्याकुल हो गई॥2॥

What good is it if his messenger, whose power cannot be described, comes to the city himself (we will be in a very bad condition)? Mandodari became very distressed after hearing the words of the townspeople from the messengers.॥2॥

रहसि जोरि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी॥ कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहू॥3॥

वह एकांत में हाथ जोड़कर पति (रावण) के चरणों लगी और नीतिरस में पगी हुई वाणी बोली- हे प्रियतम! श्री हरि से विरोध छोड़ दीजिए। मेरे कहने को अत्यंत ही हितकर जानकर हृदय में धारण कीजिए॥3॥

She folded her hands in solitude and fell at the feet of her husband (Ravan) and in her voice drenched in nectar said – O beloved! Give up opposition to Shri Hari. Consider what I have to say as extremely beneficial and keep it in your heart.॥3॥

समुझत जासु दूत कइ करनी। स्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी॥ तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई॥4॥

जिनके दूत की करनी का विचार करते ही (स्मरण आते ही) राक्षसों की स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं, हे प्यारे स्वामी! यदि भला चाहते हैं, तो अपने मंत्री को बुलाकर उसके साथ उनकी स्त्री को भेज दीजिए॥4॥

As soon as one thinks about (remembers) the actions of His messenger, the women of the demons miscarry, O dear Lord! If you want good, then call your minister and send his wife along with him.॥4॥

तव कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई॥ सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें॥5॥

सीता आपके कुल रूपी कमलों के वन को दुःख देने वाली जाड़े की रात्रि के समान आई है। हे नाथ। सुनिए, सीता को दिए (लौटाए) बिना शम्भु और ब्रह्मा के किए भी आपका भला नहीं हो सकता॥5॥

Sita has come like a winter night to give sorrow to the lotus forest of your family. Hey Nath. Listen, without giving (returning) Sita to Shambhu and Brahma, no good can come to you.॥5॥

दोहा 

राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक। जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक॥36॥

श्री रामजी के बाण सर्पों के समूह के समान हैं और राक्षसों के समूह मेंढक के समान। जब तक वे इन्हें ग्रस नहीं लेते (निगल नहीं जाते) तब तक हठ छोड़कर उपाय कर लीजिए॥36॥

The arrows of Shri Ramji are like a group of snakes and the arrows of demons are like a group of frogs. Until they swallow them, leave your stubbornness and take measures.॥36॥

https://sunderkandpaath.com/wp-content/uploads/2023/12/sundarkand36-1.mp3

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>>>Sunderkand Paath Chopai Part 35<<<

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