माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना॥ तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥1॥
माल्यवान् नाम का एक बहुत ही बुद्धिमान मंत्री था। उसने उन (विभीषण) के वचन सुनकर बहुत सुख माना (और कहा-) हे तात! आपके छोटे भाई नीति विभूषण (नीति को भूषण रूप में धारण करने वाले अर्थात् नीतिमान्) हैं। विभीषण जो कुछ कह रहे हैं उसे हृदय में धारण कर लीजिए॥1॥
There was a very intelligent minister named Malyavan. He felt very happy after listening to those (Vibhishana) words (and said-) Oh father! Your younger brother is Neeti Vibhushan (one who wears the policy as a jewel i.e. Neeti Maan). Whatever Vibhishana is saying, take it to heart.॥1॥
रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ॥ माल्यवंत गह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥2॥
(रावन ने कहा-) ये दोनों मूर्ख शत्रु की महिमा बखान रहे हैं। यहाँ कोई है? इन्हें दूर करो न! तब माल्यवान् तो घर लौट गया और विभीषणजी हाथ जोड़कर फिर कहने लगे-॥2॥
(Ravana said-) These two fools are praising the enemy. Is anyone here? Get rid of them! Then Malyvan returned home and Vibhishanji folded his hands and again said – ॥2॥
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥ जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥3॥
हे नाथ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख की स्थिति) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ परिणाम में विपत्ति (दुःख) रहती है॥3॥
Hey Nath! Puranas and Vedas say that Subuddhi (good intelligence) and Kubuddhi (false intelligence) reside in everyone’s heart, where there is good intelligence, there are various types of wealth (state of happiness) and where there is bad intelligence, the result is calamity (sorrow) lives॥3॥
तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता॥ कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी॥4॥
आपके हृदय में उलटी बुद्धि आ बसी है। इसी से आप हित को अहित और शत्रु को मित्र मान रहे हैं। जो राक्षस कुल के लिए कालरात्रि (के समान) हैं, उन सीता पर आपकी बड़ी प्रीति है॥4॥
A wrong mind has settled in your heart. Due to this you are considering good as harm and enemy as friend. You have great love for Sita, who is like Kaalratri for the Rakshasa clan.॥4॥
दोहा
तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार। सीता देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार॥40॥
हे तात! मैं चरण पकड़कर आपसे भीख माँगता हूँ (विनती करता हूँ)। कि आप मेरा दुलार रखिए (मुझ बालक के आग्रह को स्नेहपूर्वक स्वीकार कीजिए) श्री रामजी को सीताजी दे दीजिए, जिसमें आपका अहित न हो॥40॥
Oh father! I hold your feet and beg (request) you. That you keep loving me (accept the request of me as a child affectionately) and give Sitaji to Shri Ramji, in which there will be no harm to you.॥40॥